हिजड़ा
हमारे समाज का एक हिस्सा जिसे समाज पता नहीं क्यूँ अपनाने में शर्माता है , तौहीन समझता है ,वो है किन्नर य़ा हिजड़ा
जो जन्म तो इसी समाज में लेते हैं , पर कभी समाज ने इन्हे अपने साथ नहीं खड़े होने दिया , कतराता , शर्माता रहा , सादियां गुज़र गयीं , पर आज भी किन्नर या हिजड़ा लोगों के लिए गाली बन के रह गए , इन्हे देख कर किसी भी मज़हब की इंसानियत नहीं जागी , की इन्हे इंसान का दर्जा देता , समाज के दरवाजे इनके लिए खोलता , सरकार ने दास्तावेजों में इन्हें अधिकार दिये , जैसे सबको देती है पर ज़मीन नहीं दिये खड़े होने को ,
समाज इन्हे काम नहीं देता , इन्हे पढ़ने लिखने का मौका नहीं देता , बल्की तिरस्कार पे तिरस्कार करता है , फिर भी ये जी रहे हैं, ये इनकी ज़िजीविषा है जो हममें आपमें नहीं …
समाज हमेशा इन्हे दलदल में ढ़केलता रहा पर जब भी मौका मिला इन्ही तिरस्कृत लोगों ने समाज के साथ खड़े हो के दिखा दिया की इंसान होने के साथ वो हमसे बेहतर है ,,
उम्मीद करती हूँ , मेरा ये लेख आपकी उन सदियों पुरानी सोच से निकलने में मदद करेगा और आप अपनी सोच को निखार कर समाज को भी निखारेंगे