“हिचकी ” शब्द यादगार बनकर रह गए हैं ,
“हिचकी ” शब्द यादगार बनकर रह गए हैं ,
अब शहर में किसी को हिचकियां नहीं आती ।
कुछ फूल बहुत उदास रहते हैं आजकल ,
सुना है कि अब उन पर तितलियां नहीं आतीं ।
बालकनी में आज भी आती है खामोश सी धूप ,
मगर चाय पीने में पहले सी चुस्कियां नहीं आतीं ।
कुछ तो शायद उनका भी मिजाज बदला होगा ,
वरना इस तरह रिश्तों में तल्ख़ियां नहीं आती ।
हम आज भी किताब में लिखे होंगे किसी कोने पर ,
मगर हर किसी पन्ने पर उनकी उंगलियां नहीं जाती ।
दर्द बेहिसाब लिखे बैठे हैं , हम दिल के बहिखाते में ,
बस किसी अखबार में उनकी सुर्खियां नहीं आती ।
कुछ तराने हमारे बाद भी गुनगुनाए जायेगे “सागर ”
क्योंकि लौटकर जाने वाली कभी हंस्तिया नहीं आती ।
मंजू सागर
गाजियाबाद