हिंसाओं के बादल…..
देख हिंसाओं के बादल……
– August 22, 2019
देख हिंसाओं के बादल
किस प्रकार निकलते हैं।
धरा रोती है, गगन रोता है ।
और यह समस्त संसार रोता है।।
देख हिंसाओं के बादल
किस प्रकार निकलते हैं ।
बह रही है अश्रुधारा।
बन हिमालय से जलधारा।।
देख हिंसाओं के बादल
किस प्रकार निकलते हैं।
सूख गयी है नदी-बावड़ी।
प्रकृति ने गाया जब दीप राग ।
और भयंकर बन मेघ राग।।
देख हिंसाओं के बादल
किस प्रकार निकलते हैं ।
नष्ट होता जा रहा है जग सारा।
फूट रहा ज्वालामुखी का फव्वारा ।।
देख हिंसाओं के बादल
किस प्रकार निकलते हैं।।
बिखर गया है सब जन -जीवन
दब कर बन जाने को ईंधन।।
देख हिंसाओं के बादल
किस प्रकार निकलते हैं।
सो गया है लल्ला लल्लू।
है ढूँढता माँ का पल्लू।।
खो गयी है दूर कहीं
जो बन चमकीला सितारा।
है बह रहा हर तरफ
खून का फव्वारा।।