हिंदुत्व अभी तक सोया है
फिर से इस पर आघात हुए,
फिर बेबस कोई रोया है।
आघात बराबर जारी है,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
ये जात पांत में बॅंटा हुआ,
खुद का हित जान न पाया है।
ये आज यहॉं कल कहीं और,
पल पल कटता ही आया है।
घर जला पड़ोसी का फिर भी,
ये अपने में ही खोया है।
आघात बराबर जारी है,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
हम थे अखंड, फिर खंड खंड,
अब सीमित भारत अचल रहे।
इसको भी खंडित करने को,
कुछ वहशी फिर से मचल रहे।
निज पौरुष को क्यों भूल रहा,
आशंका में क्यों खोया है।
आघात बराबर जारी है,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
है धर्म अहिंसा परम किंतु,
जब संकट स्वयं धर्म पर हो।
तब कैसे कोई चुप बैठे,
आसन्न मृत्यु जब सर पर हो।
खंडित भारत माॅं का तूने,
तो ऑंचल सदा भिगोया है।
आघात बराबर जारी है,
हिंदुत्व अभी तक सोया है।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।