#हिंदी_ग़ज़ल
#हिंदी_ग़ज़ल
■ सब के सब लम्पट…।।
【प्रणय प्रभात】
● दूब मरी पर वट जस के तस।
घट रीते पनघट जस के तस।।
● ख़ुद देखो ख़ुद समझो सच को।
लाज गई घूंघट जस के तस।।
● गिनती भूल पुरानी हो गई।
नए पहाड़े रट जस के तस।।
● गोरे गए आ गए काले।
संगीनों के बट जस के तस।।
● भीड़ मची जग के मेले में।
धधक रहे मरघट जस के तस।।
● पता नहीं कब उड़ी चिरैया।
बंद रहे सब पट जस के तस।।
● दावे नित्य निदानों वाले।
जीवन के झंझट जस के तस।।
● पहुंच गया विज्ञान चाँद पर।
दुनिया के संकट जस के तस।।
● सिखा-सिखा थक गए मदारी।
बने रहे मरकट जस के तस।।
● महापुरुष कहलाते हैं पर।
सब के सब लम्पट जस के तस।।
● नदियों ने लांघी सीमाएं।
मूक दिखे पर तट जस के तस।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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