Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Sep 2022 · 5 min read

हिंदी साहित्य परंपरा

हिंदी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई। मां हिन्दी के प्रति आसक्त विभूतियों, कवियों,और नए शब्द साधकों को भी ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई।

हिंदी भाषा के सीमा को बढ़ाने के लिए वृहद रूप देने के लिए आज हिंदी दिवस क्यों मनाना पड़ रहा है? प्रश्न जटिल है उत्तर अनंत , हिंदी के संदर्भ में कुछ बातें यथावत मन को पीड़ा ग्रस्त कर रही है,जैसे कि वर्तमान पीढ़ी हिंदी के नाम पर उपद्रव और उन्माद को स्वीकार कर रही और भूल रही है कि भाषा लोक परम्परा और संस्कृति के लिए दर्पण है।
हिंदी गीतों के नाम पर उन्हें अश्लीलता प्राप्त हो रही ,दुखद है कि वो सभ्यता के विपरीत अश्लीलता को स्वीकार्य मान रहे। हिंदी भाषा को आधार बनाकर जिस प्रकार रील पर अश्लीलता फैल रही है ,निसंदेह यह इस सार्वमृदुल भाषा के गरिमा से खिलवाड़ है।

सोशल मीडिया इत्यादि के प्रयोग से हिंदी साहित्य को अत्यधिक वृहद औपचारिक साम्राज्य तो मिल गया है ,किंतु पाठक से अधिक संख्या में औपचारिक साहित्यकार हो गए हैं। ये साहित्यकार अच्छी साहित्यिक कृतियों का अध्ययन किए बिना , अपार प्रसिद्धि की आश लगाए बैठे हैं।इन साहित्यकारों को अच्छी साहित्यिक कृति और प्रसिद्ध साहित्यिक कृति के बीच का अंतर ज्ञात नहीं है।
यह यथार्थ है कि किसी भाषा और अभीष्ट भाषा बोलने वालों की परंपरा, संस्कृति, सभ्यता, न्यायशीलता, शिक्षा,विचार, भौमिकता ,संवेदनशीलता इत्यादि का प्रमाण केवल केवल उस भाषा के साहित्य से है। लेकिन अगर इसी से खिलवाड़ हो या इसके पाठकों की कमी हो तो निसंदेह परंपरा, संस्कृति, सभ्यता, न्यायशीलता, शिक्षा,विचार, भौमिकता ,संवेदनशीलता इत्यादि की मौलिक नीति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मूल रूप में परिवर्तित नहीं हो पाएगी।

किसी भाषा की उदार प्रवृति ,उसके सांस्कृतिक यात्राओं को व्यक्त करती है,और इस यात्रा के दो रूप हो सकते हैं।
पहला रूप यह हो सकता है कि उक्त भाषा के संस्कृति में किसी अन्य भाषा के संस्कृति ने नकारात्मक प्रभाव छोड़ने के लिए घुसपैठ करने की कोशिश की हो, और दूसरे रूप में यही पहल सकारात्मक प्रभाव छोड़ने की कोशिश हो।
हिंदी साहित्य के दो कलात्मक काल भक्ति काल और रीति काल मुगल शासन के अधीन फलित हुई है। चुकी मुगलों की संस्कृति अलग थी तो संभव है कि भारतीय भाषाओं पर उनके भाषाओं की संस्कृति थोड़ा बहुत प्रभाव छोड़े।भक्ति काल के बाद रीति काल उनके साहित्यिक संस्कृति का हिंदी भाषा के साहित्यिक संस्कृति में घुसपैठ माना जाना चाहिए। यह सकारात्मक है या नकारात्मक इस पर मैं कोई तर्क नहीं रखना चाहता क्योंकि कोई भी तर्क यथार्थ के अनुरूप सत प्रतिशत सही नहीं होती। मुगल के भाषाओं की साहित्य संस्कृति सौंदर्य बोध तक सीमित थी सूफीयत के नाम पर उनके पास मजहबी पुस्तकों के सिवा कुछ भी नहीं था। जबकि हिंदी साहित्य के पास धार्मिक ग्रंथों के आलावा भी कई आध्यात्मिक साहित्य थी। हिंदी भाषा के उदारता का परिणाम यह हुआ कि मुगल भाषा साहित्य को सूफियत मिली और हिंदी साहित्य को सौंदर्य बोधक कृतियां।

साहित्य में, हिंदी केवल हिंदी नहीं है बल्कि ब्रजभाषा ,अवधि,मैथिली,भोजपुरी,बुंदेली इत्यादि भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की औपचारिक और अनौपचारिक सम्मलित रूप है। इसका सीधा मतलब है कि क्षेत्रीय भाषा जितना आगे बढ़ेगी हिंदी को भी उतना ही ऊंचाई प्राप्त होगी। हिंदी खड़ी बोली के नाम पर महानगरों में जो भाषागत भेदभाव बोली में क्षेत्रीय भाषाओं के प्रभाव के कारण की जाती है ,यह हिंदी भाषा के लोकगरिमा के विरुद्ध है। अगर हिंदी में हरियाणवी,बुंदेली,अवधि,मैथिली,भोजपुरी,ब्रजभाषा,राजस्थानी इत्यादि क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव हो तो यह प्रभाव निश्चित रूप से हिंदी के लिए साहित्यिक अभ्युदय सिद्ध होगी। क्योंकि इन भाषाओं की संस्कृति सभ्यता एक जैसी है, वहीं अगर हम अन्य संस्कृति और सभ्यता की भाषाएं जैसे कि अंग्रेज़ी ,जर्मन,रोमन इत्यादि को हिंदी में उदारता रखने के लिए जगह दें तो हमारी संस्कृति और सभ्यता पर भारी आघात पहुंचेगी। प्रयोगवाद के नाम ऐसे प्रयोगों से बचने का सार्थक प्रयास करना ही चाहिए,यह प्रयास साहित्यकारों का भी हो और पाठकों का भी।

हिंदी साहित्यिक परंपरा के विकास के नाम पर,अगर अन्य भाषाओं के साहित्यिक कृति का अनुवाद हिन्दी साहित्य के पाठकों तक पहुंचे तो इसका प्रभाव भी असंवेदनशीता के रूप में भारतीय परंपरा में कुछ सौ दौ सौ वर्षों के बाद धूल मिल सकती है। उदाहरण के लिए आप देख सकते हैं,,प्रेम हिंदी साहित्य में दर्शन और अध्यात्म का विषय रहा।फलस्वरूप कबी मीरा बाई को कृष्ण से प्रेम हुआ,तो कभी तुलसीदास को श्री राम से।इसी प्रकार आप हिंदी साहित्यिक मान्यताओं के अनुरूप प्रेम के दर्शन और आध्यात्मिक विषय होने के संदर्भ में रविदास,कबीर,विद्यापति,सूरदास इत्यादि काव्यरथियों को पढ़ सकते हैं। वहीं हिंदी भाषा साहित्य के सुदूर पश्चिमी भाषाओं के साहित्य में प्रेम भौतिकवाद है,और अगर उस भौतिक आधार वाले प्रेम रसिक साहित्य का अनुवाद हिन्दी भाषा में होगी तो प्रभाव परिकल्पित है ,परिकल्पना करें।उसके बाद आप स्वयं ही तय कर सकेंगे कि कुछ उपद्रवी हिंदी भाषा साहित्य में अनर्गल कृतियों को लाकर हिंदी बोलने वाली संस्कृति से खिलवाड़ करना चाहते हैं। इस उन्माद के कारण हिंदी साहित्य अपने मूल उद्देश्य से भटक सकती है।

हिंदी साहित्यिक परंपरा की तुलना अगर अन्य संस्कृतियों से करें तो पाएंगे।प्रकृति,वृक्ष,नदी,झड़ना,पर्वतमालाएं,खेत,मैदान,पशु पक्षी,आकाश, जल,अग्नि,धातु, अधातु इत्यादि प्राकृतिक वस्तुओं के लिए हिंदी साहित्य में उदारता है स्थान है वो शायद ही अन्य भाषा संस्कृति में हो। हां उनके शिक्षा पाठ्य क्रम में उपरोक्त प्राकृतिक वस्तुएं अलग अलग विषयों में मिल सकते हैं किंतु लोक भाषा और साहित्य में मिलना दुर्लभ है।अन्य संस्कृति जिसे शिक्षा पद्धति के भूगोल,जीव विज्ञान,रसायन विज्ञान ,भौतिकी,आर्थिक,कृषि विज्ञान इत्यादि विषयों में पाठ करती है। उन सभी प्राकृतिक वस्तुओं का महत्व अगर वर्तमान समय में भी कहीं वर्णित है तो वो है भारतीय लोक भाषाओं की साहित्य ,जिसे समूल रूप में हिंदी होने का ख्याति प्राप्त है। उन्नत और सार्वभौमिक लोक परम्परा और संस्कृति के लिए हिंदी साहित्य के सानिध्य में जो है वो विश्व के किसी भी संस्कृति और परंपरा के भाषा साहित्य में नहीं है। देर है तो केवल इस बात का कि हिंदी के पाठक इन उन्नत और उदार साहित्यिक विचारों से दूर होकर संकीर्ण संस्कृति के भाषा साहित्य तक पहुंचने को प्रयासरत हैं।इस संकीर्णता से बचने का एक ही रास्ता है कि हिंदी भाषा साहित्य तक हम पहुंचने का प्रयास करें ,और अपने सांस्कृतिक उदारता को प्राप्त कर पुनः विश्व का मार्ग प्रशस्त करने के लिए विशिष्ट आत्मबल से आगे बढ़ें।

2 Likes · 179 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*औपचारिकता*
*औपचारिकता*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
सफ़ेदे का पत्ता
सफ़ेदे का पत्ता
नन्दलाल सुथार "राही"
याद कब हमारी है
याद कब हमारी है
Shweta Soni
"ऐसा मंजर होगा"
पंकज कुमार कर्ण
“मृदुलता”
“मृदुलता”
DrLakshman Jha Parimal
दासी
दासी
Bodhisatva kastooriya
क्या ?
क्या ?
Dinesh Kumar Gangwar
माना कि दुनिया बहुत बुरी है
माना कि दुनिया बहुत बुरी है
Shekhar Chandra Mitra
'वर्दी की साख'
'वर्दी की साख'
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
पितृ दिवस
पितृ दिवस
Ram Krishan Rastogi
किसी को नीचा दिखाना , किसी पर हावी होना ,  किसी को नुकसान पह
किसी को नीचा दिखाना , किसी पर हावी होना , किसी को नुकसान पह
Seema Verma
संत कबीर
संत कबीर
Lekh Raj Chauhan
फीके फीके रंग हैं, फीकी फ़ाग फुहार।
फीके फीके रंग हैं, फीकी फ़ाग फुहार।
Suryakant Dwivedi
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
gurudeenverma198
हर खुशी
हर खुशी
Dr fauzia Naseem shad
शहर कितना भी तरक्की कर ले लेकिन संस्कृति व सभ्यता के मामले म
शहर कितना भी तरक्की कर ले लेकिन संस्कृति व सभ्यता के मामले म
Anand Kumar
प्रकृति
प्रकृति
Sûrëkhâ Rãthí
জীবন নামক প্রশ্নের বই পড়ে সকল পাতার উত্তর পেয়েছি, কেবল তোমা
জীবন নামক প্রশ্নের বই পড়ে সকল পাতার উত্তর পেয়েছি, কেবল তোমা
Sakhawat Jisan
रक्त को उबाल दो
रक्त को उबाल दो
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
राम का राज्याभिषेक
राम का राज्याभिषेक
Paras Nath Jha
Indulge, Live and Love
Indulge, Live and Love
Dhriti Mishra
बेमेल कथन, फिजूल बात
बेमेल कथन, फिजूल बात
Dr MusafiR BaithA
#शारदीय_नवरात्रि
#शारदीय_नवरात्रि
*Author प्रणय प्रभात*
*हर मरीज के भीतर समझो, बसे हुए भगवान हैं (गीत)*
*हर मरीज के भीतर समझो, बसे हुए भगवान हैं (गीत)*
Ravi Prakash
2390.पूर्णिका
2390.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
अब मै ख़ुद से खफा रहने लगा हूँ
अब मै ख़ुद से खफा रहने लगा हूँ
Bhupendra Rawat
दोस्ती तेरी मेरी
दोस्ती तेरी मेरी
Surya Barman
सुख दुख जीवन के चक्र हैं
सुख दुख जीवन के चक्र हैं
ruby kumari
मेरा चाँद न आया...
मेरा चाँद न आया...
डॉ.सीमा अग्रवाल
जीवन का सफर
जीवन का सफर
नवीन जोशी 'नवल'
Loading...