हिंदी – दिवस
, हिंदी- दिवस
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वर्ष पचहत्तर बीत गये हैं ,
हमको यूँ आजाद हुए –
हिंदी – हिंदी चिल्लाते हैं,
मन में बड़ी उमंग लिए !
जिस भाषा को जन्म से बोला ,
उस पर ही अभिमान नहीं –
फिर पाया है जन्म कि जिस से ,
कैसे हो स्वाभिमान वही !
मन के घोड़े जो दौड़ा लो ,
मन दौड़ाओ तो जानें –
हिंदी दिवस पर जो कहते हो ,
उसे निभाओ तो जानें !
घर की मुर्गी दाल बराबर,
एक कहावत चल आई –
शायद इसीलिए “हिंदी” ने,
घर में ही इज्जत ना पाई !
कसमें खा-खा,पानी पी-पी,
बहुत दुहाई देते हो –
हिंदी हर भाषा की बिंदी,
बढ़-चढ़ कर ये कहते हो !
तुम्हीं कहो औ तुम्हीं नकारो,
कैसे काम चलेगा रे !
हिंदी पहनो हिंदी ओढ़ो-
तभी तो काम चलेगा रे !!
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मौलिक चिंतन,आशुकवि
स्वरूप दिनकर
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