हिंदी जन-जन की भाषा
हिंदी जन-जन की भाषा है
हम सब इसका सम्मान करें ।
है शब्द-शब्द जिसका मधुरस
उस भाषा पर अभिमान करें ।।
अंतर्मन आलोकित करती
लिपि देवनागरी अति सोहे ।
श्रवणों को लगती सुधा सरिस
हिंदी भाषा सबको मोहे ।
फहराकर विश्व पताका हम
हिंदी का मंगलगान करें ।
ग्यारह स्वर पैंतिस व्यंजन ही
मिलकर सब गद्य-पद्य रचते ।
संस्कृत तनया के छंदों में
लय,वेद वाक्य शुचिता भरते।
घर बाहर दफ्तर न्यायालय
में हस्ताक्षर-अवदान करें ।
वैज्ञानिकता पहचान बनी
है ज्ञान अलौकिक हिंदी में ।
इसका है मानक श्रेष्ठ रूप
ढूँढें सच्चाई विंदी में
साहित्य सृजन से हम अपनी
हिंदी माँ पर अभिमान करें ।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी©®