हिंदी के हत्यारे
गीत।
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हम सब हिंदी भाषी ही तो, हिंदी के हत्यारे हैं।
निज भाषा शर्मिंदा करती, बोल विदेशी प्यारे हैं।
उस थाली में छेद करें हम, खाते हैं जिस थाली में।
छोड़ दिए मखमल का बिस्तर, पड़े हुए हैं नाली में।
खुद ही अपनी जड़ को खोदें, पत्ते ऐसे न्यारे हैं।
निज भाषा शर्मिंदा करती, बोल विदेशी प्यारे हैं।
मम्मी, डैडी, अंकल, आंटी, रोज सिखाते बच्चों को
बाबा माई कहना अब हम, कहाँ बताते बच्चों को।
हिंदी खातिर अंग्रेजी के, शब्दों में अब नारे हैं।
निज भाषा शर्मिंदा करती, बोल विदेशी प्यारे हैं।
भारत के माथे की बिंदी, हिंदी पर अभिमान करो।
मोह त्याग कर अंग्रेजी का, हिंदी का उत्थान करो।
हिंदी को सम्मान दिलाना, यह कर्त्तव्य हमारे हैं।
निज भाषा शर्मिंदा करती, बोल विदेशी प्यारे हैं।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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