हिंदी का आनंद लीजिए __
✍️हिंदी का थोडा़ आनंद लीजिए …
कहते हैं हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे हैं
एक वाक्य में समेटे, ज्ञान का बड़ा संसार हैं…
बात पर बात, और खाने पीने के भरे भंडार हैं
कहीं पर फल है तो कहीं आटा-दालें हैं,
कहीं पर मिठाई है, कहीं पर मसाले हैं ,
चलो, फलों से ही शुरू कर देते हैं,
एक एक कर सबके मजे लेते हैं…
आम के आम और
गुठलियों के भी दाम मिलते हैं,
कभी अंगूर खट्टे हैं,
तो कहीं अंगूर की बेटी लेने को मचलते हैं।
एक अनार और सौ बीमार
रोज खाएं एक सेव,भगाये रोग हजार
किस खेत की मूली की ललकार,
खरबूजे,खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं।
कहीं दाल में काला है,
तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती है,
कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है,
तो कोई लोहे के चने चबाता है,
कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है,
मुफलिसी में जब आटा गीला होता है,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है,
सफलता के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते है,
आटे में नमक तो चल जाता है,
पर नमक में आटा हो तो कैसे खाओगे।
गेहूं संग, बथुआ को भी पानी मिल जाता है।
तो कभी गेंहू के साथ,घुन भी पिस जाता है।
दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम,
अपनी तो क्या कहें,ये मुंह मसूर की दाल है।
गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं,
और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं।
कभी तिल का ताड़, राई का पहाड़ बनता है
कोई जिस थाली में खाया,उसी में छेद करता है
कभी ऊँट के मुंह में जीरा है,
कोयले की खदान में, छुपा हीरा है।
नमक का हक अदा करने वाले भी,
कभी कभी जले पर नमक छिड़कता है।
दांतों के बीच जीभ की तरह रहना पड़ता है
किसी के दांत दूध के हैं,
तो आप कौन से दूध के धुले हैं।
किसी को छठी का दूध याद आ जाता है,
दूध का जला छाछ को भी फूंकफूंक पीता है।
घर खीर तो बाहर खीर,यह बात समझ आता है
दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है।
कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा कर रोई है,
तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है।
नाम धरा गणपत, मुंह को देखो ये गत
कानी के ब्याह में सौ जोखिम,
शादी वो लड्डू हैं, जो खाए वो भी पछताए,
और जो नहीं खाए, वो भी पछताते हैं,
शादी की बात सुन,मन में लड्डू फूट जाते हैं
कई शादी बाद,दोनों हाथों में लड्डू लिए घूमते हैं।
कोई जलेबी की तरह सीधा है,
इनको समझना टेढ़ी खीर है,
किसी के मुंह में घी शक्कर है,
सबकी अपनी अपनी तकदीर है…
कभी कोई चाय-पानी करवाता है,
कोई मख्खन लगाता है,
कोई एड़ा बन पेड़ा खाता तो
कोई सबके लिए गुड़ का पुआ बन जाता है
और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है,
तो सभी के मुंह में पानी आ जाता है,
भाई साहब अब कुछ भी हो,
घी तो खिचड़ी में ही जाता है।
जितने मुंह है, उतनी बातें हैं,
भैंस के आगे बीन बजाते हैं।
सब की अपनी ढपली अपना राग
ना जाने कौन सा राग अलाप रहे हैं।
नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है
अरे भाई धीरे बोलो, दीवारों के भी कान होते हैं।
सभी बहरे है बावरे हैं…
अरे! ये सब हिंदी के मुहावरे हैं…🙂🙂
__ मनु वाशिष्ठ