हाहाकार मचा दूँगा
सूने उर के आंगन में गंगा की धार बहा दूँगा
मिला अगर सहयोग आपका हाहाकार मचा दूँगा
तन मन धन अर्पित करने को जब हर साथी उत्साहित हो
संघ में हर्ष तभी होगा जब संघर्ष समाहित हो
फिर वादा करता हूँ मैं .. सारे अधिकार दिला दूँगा
मिला अगर सहयोग आपका हाहाकार मचा दूँगा
माना कि हम शिक्षक हैं इल्म और इबादत रखते हैं
हर जोर जुल्म की टक्कर में हम कलम की ताकत रखते हैं
पर आंच कलम पर आई तो फिर मैं तलवार उठा लूँगा
मिला अगर सहयोग आपका हाहाकार मचा दूँगा
सत्ता के गलियारों में अब गूंजेगा यह नारा है
सुनो राजनीति के ठेकेदारों, पेंशन अधिकार हमारा है
अब भी कानों में जूं न रेंगी तो मैं सरकार हिला दूँगा
मिला अगर सहयोग आपका हाहाकार मचा दूँगा
– हरवंश श्रीवास्तव