#हास_परिहास
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■ आधी हक़ीक़त : आधा फ़साना
【प्रणय प्रभात】
आप सबको पता है कि महाबली हनुमान जी मच्छर का रूप धारण कर लंका पहुंचे। आधी रात के समय मुख्य द्वार पर उनका सामना दुर्ग की मुख्य प्रहरी “लंकिनी” से हुआ। जिसने रामदूत हनुमान की राह रोकने के एवज में मुंह पर मुक्का खाया और ज़मीन पर लोटपोट हो गई। चौखटा चपटा हो गया और ख़ून की धारा फूट पड़ी। उसने जैसे-तैसे ख़ुद को संभाला। बजरंग बली को प्रणाम कर अपने ज्ञान व अनुभव का प्रमाण दिया और उन्हें लंका में प्रवेश करने दिया। रामायण के अनुसार इस पात्र का रोल यहीं ख़त्म हो गया। लंकिनी के हश्र के बारे में न किसी ने बताया, न किसी ने जानने में दिलचस्पी दिखाई।
अब आप सुनिए आगे की दास्तान। लंका नगरी को फूंकने और माता जानकी से चूड़ामणि लेने के बाद हनुमान जी नगरी से विदा हुए। सिंह-द्वार पर निढाल पड़ी लंकिनी उठ कर बैठ गई। उसने पितामह ब्रह्मा द्वारा दिए गए वरदान को साकार करने के लिए हनुमान जी को साधुवाद दिया। इससे पहले कि हनुमान जी कुछ बोलते, लंकिनी ने अपने भविष्य से जुड़ा सवाल तोप जैसे मुख से गोले की तरह दाग दिया।
बेशक़, महाबली के मुक्के ने उसके थोबड़े का भूगोल बदल डाला हो, मगर उसके दिमाग़ में फिट वाई-फाई बख़ूबी अपना काम कर रहा था। उसे पड़े-पड़े पता चल गया था कि महाराज अपनी माता जी से अजर-अमर होने का वरदान लेकर चले आ रहे हैं। बस, इसीलिए वो जानना चाहती थी कि आगे जाकर उसका क्या होगा? ज्ञानियों में अग्रगण्य हनुमान जी उसके प्रश्न और उसमें छुपी जिज्ञासा को पल भर में समझ गए। उन्हें पता लग गया कि बंदी मोक्ष पाने की हसरत रखने वालों में नहीं। वो मृत्युलोक में ही डेरा-तम्बू लगाए रखना चाहती है।
हनुमान जी ने घुटने के बल बैठते हुए अधमरी लंकिनी के सिर पर हाथ फेरा। उसे कलियुग में धरती पर पैदा होने का वरदान दिया और उसकी भूमिका व पहचान का खुलासा भी कर दिया। जिसे सुनकर वो गदगद हो गई और राहत की ठंडी सांस लेकर स्वर्ग सिधार गई। आपको पता है कि हनुमान जी ने उससे कहा क्या था…? कहां से पता होगा आपको…? चलिए सारा क्लाईमैक्स मैं ही बता देता हूं।
हनुमान जी ने लंकिनी को बताया कि वो कलियुग में भी महिला ही होगी और दिन-रात घर के दरवाज़े पर बेमतलब लटकी रहने के विशिष्ट गुण के बलबूते अलग से पहचान में आएगी। उसके पास आसपास की औरतों से चोंच लड़ाने व आते-जातो को ताकने के अलावा और कोई काम नहीं होगा। उसकी खोपड़ी में इनबिल्ट वाई-फाई हमेशा काम करता रहेगा और उसे मादा-मुखबिर के तौर पर अलग पहचान दिलाएगा। यही नहीं, निंदा-रस के प्रचार-प्रसार हेतु उसका जन्म हर कस्बे, हर शहर, हरेक मोहल्ले में होगा और कोई भी उसके मुंह पर मुक्का जड़ना तो दूर, कुछ बोलने तक की हिमाकत नहीं कर पाएगा। कुछ लंबे-चौड़े, भारी-भरकम स्ट्रेक्चर और कुछ नर पे भारी सबल नारी के रूप में मिले वैधानिक विशेषाधिकारों के कारण। वरदान सच हुआ और किस्सा ख़त्म। अपने मोहल्ले में नज़र घुमाइए और करिए दीदार। वो भी दूर से ..!!
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)