हास्य दोहे ।।
कर्जा देता जो मित्र को , वो ज्ञानी कहलाये ,
महामूर्ख वो मित्र है , जो वापस लौटाये ।
बिना मतलब को पिटेगा समझाया था तोय ,
आगे – आगे ना बोल , बचाएगा ना कोय ।
गुरु पापा दोऊ खड़े , अर्चना लागू पाव ,
तभी गुरु पापा ने पाव दिये छुड़वाये ।
पूरी बात मनाने के लिए , दो बाते रख याद ,
पापा के पाव दबाओ , और बनवाए रखो आशीर्वाद ।
अर्चना बोली ये हमसे ना हो पाये ,
कहीं पापा के जूते वापस ना पड़ जाये ।
बुरे समय को देख कर अर्चना काहे रोय , आगे के बाल झड़ गये अब तू काहे रोय ,
किसी भी हालत में तेरा , पूरा बाल ना बाका होय ।
जब हूं मैं साथ तेरे तू काहे को रोय ।।
दोहों को पढ़िए या आगे बढ़ जाइये ,
जैसे हमसे हो पाया वैसे दियो बनाये ।।