हास्य आलोचनात्मक व्यंग्य “क्या आप सच में BPL हैं”
जनता कहती है
नहीं मान रहे ये पैसे वाले !
वरन् जनता ने तो कब का कह दिया !
घर की दो सूखी रोटी ही भली !
पर हटा लो जो लिखा है !
घर के बाहर !
तीन रंग की पट्टी में”गरीबी रेखा से नीचे”
BPL..संबोधन बिल्कुल ठीक नहीं !
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(पार्टी एवं नेता समझाते हैं)
कमाल करते हो !
तुम हमारे बहुत पुराने समर्थक हो !
तुम तो इस सम्मान के हकदार हो !
हमने तो तीन ट्रैक्टर एक ट्रोली !
छह बीघा सतरह बिसवा वाले तक को दिया है ये सम्मान !
ऊपर से हो रहा है बुढ़ापे का सम्मान!
अठारह सौ मिल रहे अबकी बार !
बस नहीं है ..पढे लिखो को रुजगार !
बढ़ती रही है नौकरशाही में पैगार !
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लगाऐ लघु उद्योग लें जाऐं पैसे अपार !
तब ही तो बढ़ पाएगी जी.एस.टी की धार
जब बढ़ेगी गरीबी !
तभी तो लाचारी फैलेगी !
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दो राज्यों में है एक ही पार्टी की हैं .. सरकार !!
एक जल-मग्न है !
दूसरा है सूखे की ओर !
तोला भी पानी नहीं देंगे !
म्हारे चाहे डूबे हररोज चार !
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हमने तो जो आरक्षित है !
उनको आज तक नहीं आने दिया बाहर !!
मंडल आया भूला दिया आधार !!
रोज रोज बढ़ती मांग !
नामांकन होगा विकास !
होगी हर चीज़ में बढ़ोत्तरी !
बंद करो …अपनी प्रश्नोत्तरी !
जीओ शान से !!
भले BPL लिखा हो बाहर !!
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तुम हमें वोट दो !
कभी साईकिल देंगे!
कभी कम्प्यूटर!!
पर उभरने न देंगे!!
ये है हमारे संस्कार !!!
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एक लोभी सरकार, पार्टी, नेता से !!
खुद से ज्यादा यकीन ना करें !!
लोभ से बचे !!
लोकतंत्र का सम्मान करें !!
यही आप से दिली-गुजारिश है!!
शायद आप निराश नहीं करेंगे !!
देश का भविष्य आपके हाथ में है !!
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डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया !