हालात हैं सुधरते,,,, गज़ल
हालात हैं सुधरते
गज़ल
रचना नंबर (7)
221 2122.221 2122
इयों / से
बेकार काम होता बदनाम गलतियों से
हालात हैं सुधरते पुरज़ोर बाज़ियों से
मतला
मिल बैठकर निकालो तरक़ीब गुत्थियों की
मसलें नहीं सुलझते आपस की तल्खियों से
डूबे हुए न बचते मझधार में समाते
मिलता सही किनारा मजबूत कश्तियों से
ये देश सैनिकों का करते सलाम इनको
उड़ता रहे तिरंगा जाँबाज हस्तियों से
नादान लोग कैसे करते नहीं तमन्ना
विश्वास दिल में हो तो, आशीष देवियों से
बिन कर्म के न मिलती मंज़िल कभी किसी को
नारे लगा रहे हो ले हाथ तख्तियों से
ख़ुद पर रखो भरोसा मत हो निराश तुम तो
हालात भी सुधरते आपात स्थितियों से
सरला कहे सभी से बैठो नहीं निठल्ले
किसको मिला सहारा बेजान तालियों से
धुन,,,कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर