हालात बदलेंगे या नही ये तो बाद की बात है, उससे पहले कुछ अहम
हालात बदलेंगे या नही ये तो बाद की बात है, उससे पहले कुछ अहम सवाल है जो हमें खुद से जरूर पूछने चाहिए..
— क्या हम किसी को पूरा सुन भी पाते हैं?
— केवल सुनना ही नही, क्या हम पूरी निष्पक्षता से उसकी बात समझ भी पाते हैं?
— किसी एक विषय में वो गलत हो सकता है लेकिन बहुत से विषयों में वो हमसे बेहतर है, क्या हम इस बात को खुले मन से स्वीकार कर पाते हैं?
— अगर उसकी सोच हमसे अलग हो तो क्या हम उस असामनता में भी समानता ढूंढ पाते हैं?
— दूसरों में बदलाव लाने का सपना हर कोई देखता है लेकिन क्या हालात सुधारने के लिए हम खुद में बदलाव लाने को तैयार है?
— क्या हम इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है कि हमारी प्राथमिकता खुद को सही ठहराना नही, हमारा अहंकार नही बल्कि हालातों को सुधारना है?
— कहीं ऐसा तो नही कि हम हमेशा से पक्षपाती ही रहे हों, कहीं ऐसा तो नही कि हालात सुधारने के नाम पर हम केवल और केवल अपनी मनमानी कर रहे हैं?