हार गए तो क्या अब रोते रहें ? फिर उठेंगे और जीतेंगे
सुशील कुमार ‘नवीन’
क्रिकेट प्रेमियों के लिए रविवार का दिन प्रकाशमय और रात अंधियाली रही। 45 दिन तक अजेय रहने वाली इंडिया की टीम 46 वें दिन धराशायी हो गई। हार की वजह पर अभी लंबी चर्चाएं होंगी। आलोचना के तीर लगातार छोड़ें जाएंगे। ये हार आसानी से पचने वाली नहीं है। अब अगले वर्ल्ड कप के इंतजार के सिवाय हमारे पास उपाय भी कुछ नहीं है। लाखों लोगों को रातभर नींद नहीं आई। उनमें से एक मैं भी हूं। रोहित आर्मी हारी तो दुख का कोई पारवार नहीं रहा। जैसे तैसे रात गुजारी। आंख लगी भी और नहीं भी लगी। सुबह ड्यूटी पर भी जाना था। सो तैयार होकर बैठ गया। गेट पर पड़ा अखबार आज मुझे चिढ़ा रहा था, कि आजा, आज भी मुझे चाट ले। पर उसे पढ़ने का जरा सा भी मूड नहीं था। बाहर कुर्सी डाल कर बैठ गया। इसी दौरान हमारे पड़ोस में रहने वाले दादाजी ग्यारसी लाल को तेज कदमों से आते देखा। राजधानी से भी तेज कदम में लगातार चलते जा रहे थे।
गुस्सा उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था। सुबह सुबह उनका यह विकराल रूप किसी अनिष्ट की आशंका कर रहा था। उन्हें रोकना मैने मुनासिब नहीं समझा। अनदेखी कर उन्हें आगे की तरफ जाने दिया। पर वो ही पलट कर वापिस मेरे तरफ आ गए। राम रमी के बाद बोले-मास्टर! यो हेड किसका छोरा सै? अर यो कित पावैगा? मेरी नॉलेज में भी हेड नाम का कोई लड़का निगाह में नहीं था। सो उनको जवाब क्या देता। मैंने भी उनकी बात को टालते हुए कहा- दादा! क्या हुआ। क्यों फायर ब्रिगेड की तरह दौड़े जा रहे हो। बोले, मास्टर! थोड़ी देर डट ज्या। हेड का सिर फोड़ कै इब्बई आया। हेड का पता है तो बता, नहीं तो मेरा टेम खराब ना कर। मैंने कहा, हेड को तो मैं नहीं जानता। है,पर इसने ऐसा क्या कर दिया कि मरने मारने पर उतारू हो रहे हो। दादा ने फिर जो कहानी सुनाई, वो भी कम रोमांचक नहीं थी। आप भी उन्हीं की जबानी सुनें।
दादा सुबह सुबह जब उठे तो लाडला पोता दिखाई नहीं दिया। बहू से पूछा तो जवाब मिला वो तो रातभर से अपने कमरे में बिस्तर पर औंधे पड़ा है। कुछ भी नहीं बोल रहा। नींद का बहाना बना रहा है और नींद कोसों दूर है। समझ नहीं आ रहा कि मामला क्या है? पोते की यह दशा सुन दादा बहुत चिंतित हुए। फौरन पोते के कमरे में पहुंचे। मजाकिया मूड में बोले – रै तेरा सुसरा! आड़े मूद्दा पढया सै। मैं सारे गाम्म मह टोह आया। जा होक्के न नया पुराना कर ल्या। ( हुक्के को भर ला)। पोते ने साफ इंकार कर दिया। दादा!आज मूड ठीक नहीं है। आप ही हुक्के को भर लो। मूड ठीक नहीं सै। तेरे मूड का कै होग्या। तेरी कौनसी झोटी खुलाके भाजगी। दादा! वो हेड म्हारे वर्ल्ड कप नै खोस (छीन) लेग्या। म्हारी सारी मेहनत बेकार होगी। यह कहकर पोता फूट फूटकर रोने लगा।
पोते का करुण रुदन सुन दादा का कलेजा हिल गया। आव देखा न ताव। अपना डोगा उठाकर उस हेड को ढूंढने निकल पड़ें, जिसने उसके लाडले पोते को रुलाया था। उसकी नजर में हेड कोई गांव का ही पोते का संगी साथी होगा। इसी दौरान दादा ग्यारसी लाल से मेरी मुलाकात हो गई थी। दादा का गुस्सा देखने लायक था। मुझे बोले, यो हेड बड़ा नालायक छोरा है। पोते का वर्ल्ड कप छीन लेग्या। रात का रोण लाग रहया सै। वर्ल्ड कप का नाम सुनते ही मुझे हंसी आ गई। समझ गया कि मामला क्रिकेट प्रेम का है। पोते जैसी दशा तो आज हर उस शख्स की है जो क्रिकेट में रुचि रखता है। सब पगलाए हुए से है। देश की क्रिकेट टीम की वर्ल्ड कप में हार का दुख मुझे भी है। पर उसका अब कोई इलाज तो नहीं है। खेल है। जीत हार चलती रहती है। वो अच्छा खेले तो जीत गए, हम अच्छा नहीं खेले तो हार गए।
मुझे हंसता देखकर दादा बोले – मास्टर? बड़ा अजीब आदमी है। इसमें हंसने की कौनसी बात है। म्हारे छोरे का वर्ल्ड कप खुसग्या और तूं हंस रहा है। मैं बोला दादा! यो वर्ल्ड कप तो हेड सारे देश का खोस लेग्या। तेरा पोता ही नहीं सारा देश रोण लाग रह्या सै। दादा बोले -न्यू कुकर (कैसे)? ईसा यो हेड कौनसा लाठ साहब होग्या कि सारे देश नै रुवाग्या। दादा को बिठाकर चाय पिलाई और उन्हें समझाया कि क्रिकेट के खेल में कल रात को क्या हुआ। सारी बात सुन दादा भी जोर से हंसा। बोला – मास्टर, या तो रोण की बात कोनी। खेल में तो यो चालदा रहाया करे। चाल छोरे ने घर जाकर समझाते हैं।
दादा को मना करने का तो मतलब ही नहीं था। सो उनके पीछे पीछे हो लिया। जाकर उनके पोते का दर्द दूर करने का प्रयास शुरू किया। उसे कहा – तूं इस बात पर दुख मना रहा है, सोच अफ्रीकी टीम पर क्या बीती होगी। 2023 वर्ल्ड कप के लीग स्टेज में दमदार प्रदर्शन करने वाली यह टीम सेमीफाइनल में फिर हार गई। यह इस टीम के साथ पहली बार थोड़ा ही हुआ है। 1992 से लेकर अब तक पांच बार यह टीम सेमीफाइनल खेली है, लेकिन कभी भी फाइनल में प्रवेश नहीं कर सकी है। लगातार नॉकआउट में हार की वजह से उसका नाम चोकर्स पड़ा है। आंखों में आसूं भरे डी कॉक का चेहरा देखते तो हार का क्या दर्द होता है जान जाता। हर बार अच्छा खेलते हैं और जब जीत की जरूरत होती है, तब हार जाते हैं।
बात को जारी रखते हुए कहा कि दर्द महसूस करना है तो न्यूजीलैंड के कप्तान विलियम्सन का करो। 2019 में जीतकर भी हार गया। इस बार भी प्रदर्शन कमजोर थोड़ा ही था। सेमीफाइनल में भारत की टीम को इस बंदे ने पसीने छुड़ा दिए थे। रचिन रविंद्र, डेरिल मिशेल की शानदार पारियां क्या विश्व विजेता बनने लायक नहीं थी|
ये समय रोने का थोड़े ही है। जो हो गया सो हो गया। रोने से गया वक्त अब आने वाला तो है नहीं। तूं तो एक क्रिकेट प्रेमी है। और जिन्होंने इसके लिए दिन रात एक कर रखा था , उनके साथ क्या बीती होगी। ये महसूस कर। जा खड़ा हो, स्कूल जाने का समय हो रहा है। कप अगली बार जीत लेंगे। पहले भी जीते थे आगे भी जीतेंगे। बात का पोते पर पूरा असर हुआ। वो अपने स्कूल चला गया और मैं मेरे। भले ही ये मेरी बात एक उपदेशक की तरह हो, पर है तो सही। अब रोने से तो कुछ होने वाला नहीं है। जो हो गया सो हो गया। फिर उठेंगे और फिर जीतेंगे। जय हिंद।
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार
96717 26237
लेखक नियमित स्तंभकार और वरिष्ठ पत्रकार है।दो बार अकादमी सम्मान(राज्य स्तरीय) से सम्मानित है।