हानिकारक रोमांस
साहब जी के पास में, खड़ी थी सुन्दर नार
चहरे पर चूरण मले, सुरमा नैन हजार
सुरमा नैन हजार, देख सर खाए धोखा
देख समय अनुकूल, साब ने मारा चौका
पास खड़ा था यार, उसी का ही हरजाई
जमकर धोये हाथ, तबियत से की पिटाई
सम्मेलन का समय था, कौतुक भया अपार
मंच पे कवि पेलचंद, पेल गये दो चार
पेल गये दो चार, एक भी समझ न आई
श्रोता थे होशियार, खिसक गए मेरे भाई
कविता पढ़ कविराय, बोझ हल्का कर मन का
सुनने वाले चार, समय था सम्मेलन का
मेरे मन में प्रेम था, उसके लिये अथाह
मैं पढता था शायरी, वो करती थी वाह
वो करती थी वाह, मुझे उल्लू ही बनाया
पत्रक उसने जाय, खुद बापू को दिखाया
उसके बाप को देख, जुरजुरी हुई बदन में
जूत्ते खाये चार, प्रेम था मेरे मन में