हाथ जाते हुए वो हिलाते रहे
जब तलक वो नज़र मुझको आते रहे।
रोया दिल हम मगर मुस्कुराते रहे।।
चाहकर भी न हम रोक पाये उसे।
लब खुले ही नहीं थरथराते रहे।।
इस कदर मेरी नज़रों से ओझल हुए।
हाथ जाते हुए वो हिलाते रहे।।
तेरी यादों से बहला न पाए जो दिल।
तुमपे लिखके तुम्हें गुनगुनाते रहे।।
दिन तो गुजरा मेरा रोते रोते मगर
रात ख़्वावों में वो मुस्कुराते रहे।।
हू ब हू अक्स तेरा उभरता गया।
रेत पर उंगलियाँ हम घुमाते रहे।।
इस तरफ हों कभी उनकी नज़रें करम ।
आस का एक दीपक जलाते रहे।।
कोई उपचार गम का न वो कर सके।
हाल सुनते रहे हम सुनाते रहे।।
दिल में मातम सा छाया जुदा जो हुए।
और खुदको चिता सा जलाते रहे।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा