हाड़ी रानी
हाड़ी रानी
रूप सुंदरी हाड़ी ने पति मोह पाश को मेट दिया।
राष्ट्र प्रेम हित उसने अपना शीश पुष्प सा भेंट किया।
रूप सुंदरी हाड़ी ने पति मोह पाश को छिन्न किया।
राष्ट्र प्रेम हित उसने अपना शीश पुष्प सा भिन्न किया।
थे राजा चित्तौड़ राज्य के वचन निभाने गए हुए।
पीछे से औरंगजेब के हमले प्रतिपल प्रबल हुए।
चूड़ावत सरदार सैन्य का, ब्याह करा कर आया था।
पत्नी का यौवन सुंदरता, मोहित मन भरमाया था।
पाया जब संदेश युद्ध का, सेज छोड़ उठ खड़ा हुआ।
किंतु रूपसी रानी का मधु, रूप चित्त में गड़ा हुआ।
तिलक लगाकर विदा कर रही, गौरव भाव विदाई के।
चूड़ावत पर भारी पड़ते, व्याकुल भाव जुदाई के।
बार-बार मुड़-मुड़कर देखे, हाड़ी रानी अचल खड़ी।
देश भक्ति, बलिदान, वीरता, ज्यों मूरत बन अटल खड़ी।
सैन्य सज रही मन चूड़ा का, प्रेम विवश अकुलाता था।
कोई निशानी मुझे भेज दो, संदेशा भिजवाता था।
सोच रही सरदार युद्ध से, मेरे कारण विलग न हो।
राष्ट्र धर्म पर अड़ा रहे, वह युद्ध क्षेत्र से अलग न हो।
रानी बोली- नाथ निशानी भेज स्वर्ग को जाती हूं।
वही मिलेंगे अब हम दोनों, आरती थाल सजाती हूं।
यह कह काट दिया सर अपना, प्रेम निशानी ले जाओ।
युद्ध करो भारत माता हित, विजय पताका फहराओ ।
स्वर्णाक्षर में लिखे जाएंगे ऐसी बालाओं के नाम।
राष्ट्र हेतु आदर्श बनेंगे ऐसी बालाओं के काम।
इंदु पाराशर