हाजिरी बाबू (लघु कथा)
हाजिरी बाबू (लघु कथा)
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“क्यों भाई ! सुना है अब दफ्तर में हाजिरी लेने के लिए एक हाजिरी बाबू की नियुक्ति की जाएगी ।”
“यह तो बड़ी अजीब – सी बात हो गई ?”
” लेकिन सच यही है । हाजरी बाबू का काम होगा कि दफ्तर में जितने कर्मचारी हैं, सुबह-सुबह सब की फोटो खींच कर सरकार को भेजना और उसके बाद हर एक घंटे के बाद इसी क्रम को दोहराते हुए जब तक दफ्तर बंद नहीं हो जाता, हाजिरी बाबू फोटो खींचकर भेजते रहेंगे।”
” लेकिन फिर हमारी हाजरी का क्या होगा ?क्या हमें रोजाना आना पड़ेगा?” अब यह स्वर रुँआसा हो गया था।
” अरे नहीं ! जैसे मशीन खराब पड़ी है, वैसे ही हाजिरी बाबू का भी कोई न कोई इंतजाम कर दिया जाएगा ।”
“लेकिन यह कैसे हो सकता है ? जब फोटो खिंचेगा तो हमें तो बैठना पड़ेगा ।”
“अरे ऐसा नहीं है । इकट्ठी फोटो एक महीने की सब लोग खिंचवा कर रख लेंगे। ड्रेस बदल- बदल कर फोटो खिंचवाएंगे और पूरे महीने चलती रहेगी।”
” वाह भाई वाह ! क्या दिमाग पाया है। यानी न दफ्तर टाइम से आना पड़ेगा और न टाइम पर जाना पड़ेगा और न ही रोज आना पड़ेगा। छुट्टी में भी हाजिरी लगेगी।.. मगर हाजिरी बाबू क्या इस बात को मान लेंगे ?” अब स्वर में चिंता प्रगट हो रही थी ।
” क्यों नहीं मानेंगे ? वह भी तो हमारे तुम्हारे जैसे ही होंगे।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451