हाइकू
एक ही सब
सबों पर प्रहार
धर्म तैयार।
पी ए का सोच
मंत्री पर है हाबी
त्रासदी बड़ी।
नभ के पार
है क्यों खड़ा ईश्वर?
सभ्यता यहाँ।
लाल कलम
नीली सी रौशनाई
पीड़ा तो कहे।
लाख छुपाओ
दर्द–भारी बादल
बरसेगा ही।
विष का रँग
बदरंग हो जाये
शिव जो पीयें।
धर्म की गली
कुरूक्षेत्र में खुली
विजय मिली।
पुत्री को जना
प्यार मनुहार हाँ
हो गयी फना।
था नहीं पता
बदल लोगे दोस्त
कंधा न देता।
दर्द जो कहा
खूश हुए थे तुम
गर्व झलका।
नीचे से देखा
ऊँचे लगे थे तुम
झूठ निकला।
हैरान हैं शिव
तुम्हारे कुकृत्य से
खुद लो विष।
गर्व में उठा
रावण का मस्तक
कट ही गया।
दिया उधार
मांग लिया अगर
टूटे सम्बन्ध।
उधार दिया
प््रागाढ़ मित्र को भी
पराया किया।
ऊँचाई पर
भूल गये आकर
नीचे थे कभी।
स्वभाव अच्छा
श्रमशील व्यक्तित्व
दरिद्र रहे।
हम जनता
बहादुर हैं हम
सहते रहें।
एन्काउंटर
सवालों के अन्दर
सौदा का गंध।
ईमानदारी
रह गया है शब्द
अर्थ गायब।
गुण्डई सत्र
वैधानिक है सभा
नाकाम तंत्र।
गुण्डों का झुण्ड
संसद में प्रवेश
प्रजा है चुप।
साथ तुम्हारा
जीवन भर मिला
जीवन ना मिला।
संवेदना है
गरीब के आँखों में
दुःख का रिश्ता।
सियासत है
संजीदगी से दूर
दूभर जीना।
ये राजनीति
राज्य हेतु नीति ना
तिकड़म है।
साथ तुम्हारा
जीवन भर मिले
मित्र‚जीवनॐ
विष निकला
समुद्र मंथन में
देवों का पाप।
संवेदना है
दरिद्र के आँखों में
दर्द झेला है।
धर्म पोषक
वो दिन चले गये
दंगों का अब।
शर्मा जी नहीं
सूरज प्रकाश जी
आईये यहाँ।
अल्ला तेरा है
ईश्वर तेरा नाम
घृणा रोक दो।
चित्त या पट
जीती हुई है बाजी
सत्ता के विलाड़।
दर्द समझो
संवेदना फूटेगा
फक्त देखो ना।
घरानों हेतु
संसद को गिरवी
हमें आयोग।
ये नेता लोग
समिृद्धि पाते रहें
हमें दो रोटी।
गरीब बच्चा
पतंग‚फुलझड़ी
सोच से बड़ी।
खटता रहा
धूप‚जाड़ा‚बरसा
खेत है खाली।
काहे उदास
आदमी का ये मन
ताके गगन।
जो बाप‚माँए
बोझ समझ भूलें
कोसे दहेज।
कोख की जाई
कर देती पराई
पुत्री दुर्भाग्य।
ब्याह के बाद।
लाड़ली सी बेटी को।
माने है बोझ।
बेटी का हक
नैहर फले–फूले
प्र्रार्थना बस?
ये माता‚पिता
पूछते तक नहीं
ब्याह के बाद।
पूरे कसाई
ब्याह के नाम बेचे
माँ‚पिता‚भाई।
धरा का कोख
बाँझपन से डरेॐ
खेत हों हरे।
नभ से जल
जल नहीं‚है वीर्य
खेत का कोख।
दादी का किस्सा
जीवन की समझ
समझ सकोॐ
घर का द्वार
सिर पर हो जैसे
पिता का हाथ।
दादी का किस्सा
दौलत वास्ते भूला
स्नेह भी भूले।
पैसे का बल
नकारा है जिसने
गुम हो गये।
वृक्ष के हाथोंॐ
सृष्टि कठपुतली
नष्ट न करेंॐ
तुलसी चौरा‚
साजन के घर का–
है खुबसूरत।
कल की कथा–
हमेशा असंतुष्टि
बेचैन मन।
चलो लें लड़
और महाभारत
स्थिति बदलेॐ
किससे कहें?
भाग रहे हैं सब
मन की व्यथा।
नदी तरल
धरती माँ सरल
नर जंगल।
शहर झूठा
बड़े–बड़े वायदे
मिली झोपड़ी।
मैं गुम गया
शहर के संस्कार
आधुनिक थे।
तरल लोहा
श्रम के संकल्प से
सख्त हो सका।
शहर में जी
गाँव की तहजीब
झूठा निकला।
गाँव के लिए
दुआ में उठे हाथ
अक्षुण्ण रखो।
बड़ी की कही
असरदार कही
छोटे की फुस्स।
ज्ञान से दूर
बड़े की परिभाषा
पैसे के बिना।
विरोधाभास
खबरों में खबर
कैसी खबर?
सूर्खियाँ सूर्ख
बयान बदलते
ये अखबार।
झाड़ू बुहारू
द्वार–घर–देहरी
जिंदा स्वपन।
नीड़ में घर।
घर में हो चीं–चीं–चीं
थकान ध्वस्त।
गाँव की मिट्टी
फसल से विहीन
सडांध भरी।
जलता सूर्य
देख नहीं पाता है
घना अंधेरा।
बड़ा खतराॐ
बम‚बारूद नहीं
मजहब है।
तीन बन्दर
संविधान का करे
बन्दरबाँट।
पाषाण युग
हमारे शहर में
नग्न फिल्में।
विजय–पर्व एकता सूत्र
एकता का सुसूत्र
विजय–दशमी या
राम का कर्ज।
है प्रजातंत्रॐ
हड़ताल का राज
प्रजा के द्वारा।
स्तब्ध संस्कृति
सभ्यता को दस्तक
हो सावधान।दिग्भ्रमित
गीता का सारॐ
हत्या पाप नहीं है।
आत्मा अमर।
उम्मीद भंग
जन्म देगा ही जंग
क्यों होना दंग।
भाषा से घृणा
धर्म‚जाति से घृणा
प््राभु से घृणा।