हाइकू
बाबर राज
तलवार महान
भुगत रहे।
प्रहार कर
अपराध ज्यों बाढ़
न्याय के मित्र।
न्यायालयों में
सत्य के वकील हों
ना कि चील हों।
न्याय का राज्य
लुटा–पिटा ठगा सा
शैतान युग।
पौधे उदास
नदियाँ मन मारे
आदमी मौन।
जंगल दुःखी
समुद्र बड़ा खुश
सत्ता विस्तार।
दौड़े हैं हम
सड़क रही खड़ी
मंजिल दिया।
सुकुन मिला
दुनियाँ भर ढ़ूँढ़े
घर के पास।
बिहार जला
अहिंसा की यशोदा
नेताओं के हाथ।
समर्थ हूँ मैं
खून पियूँगा तो क्याॐ
स्वाद का हठ।
कृष्ण का वादा
जीवित है अधर्म
भरोसे का क्या?
कृतघ्न नर
समुद्र खुश हुआ
जंगल काटो।
खेती गृहस्थी
भगीरथ प्रयत्न
भाग्य–विमुख।
तृष्णा है युवा
आदमीं गया बुढ़ा
इन्द्रियाँ फेल।
भीष्म हों मौन
जिस्म बनेगा जिन्स
द्रौपदी नग्न।
बड़े लोग हैं
बहुत बड़ा मुख
ब्रह्माँड छोटा।
नेता महान
नेतृत्व अधिकार
कैसा कत्र्तव्यॐ
श्रम से मिला
बरसात ने छिना
रोटी का हक।
आतंकियों में
अशोक लें जनम
बुद्ध जायें जी।
कूट की नीति
मानवता से तुली
झूठ निकली।
राजा की नीति
प्रजा के नाम पर
खड्ग निकली।
प््राजातंत्र था
संसद जब गया
राजा हो गया।
प्यार के लिए
विसर्जित हो गया
प्यार की कथा।
दो बड़ी आँखें
चार होके रहेगा
आये जवानी।
रसीली नदी
पतझड़ के दिन
प्यास बुझानाॐ
रसीली नदी
पतझड़ के दिन
प्यास बुझा ना।
नई सदी है
पुराने ही लोग
अचरज में।
युद्ध तैयार
मरने मारने को
हिटलरी भी।
हिंसा के लिए
कारण बताओ ना
उन्माद है ही।
सूर्यग्रहण
अपनों का ही धोखा
राहू का नहीं।
ब्याह का उमंग
रहा क्षणभंगुर
दहेज दैत्य।
सिरफिरा है
उगे सिर फिर से
दशानन सा।
आँख मिचौनी
जीवन भर चला
वही ना मिला।
खोदा पहाड़
निकली है चुहिया
प्रभु है पापी।
सूर्य ग्रहण
प्रदूषण का प्रश्न
गया है लग।
प्राण के वास्ते
रहे हाथ मारते
प्राण ना मिला।
मन आहत
रक्षक का भरोसा
थी बाजीगरी।