हाइकू
अर्जी ना लिखे
हाँ जी पास तो वे थे
ग्रेस अंक से।
आया सुखाड़
बालू में खलबली
मारे दहाड़.।
ताजमहल
उत्पीड़न–प्रतीक
मेरा विचार।
नदिया चली
चले बिना ही थकी
बालू से जली।
नभ की ओर
उड़ चला मनुष्य
खुद की खोज।
भाषायी शब्द
निरूत्तर हो गया
भाव के आगे।
जीवित रहे
दोस्त तेरी दुआ से
भाग्य ने मारा।
पौधों का नृत्य
असमय ही रूका
था प्र्रारब्ध।
बेटी का ब्याह
क्या गुड़िया का खेलॐ
तोड़े दहेज।
बिकाऊ सब
था सभ्य शहर में
गाँव में हुआ।
शिखर चढ़ा
फिर तुम्हें जो देखा
छोटे निकले।
टूटा प्रकाश
अंधेरा हुआ घना
जोड़ो प्रकाश।
जिन्ना या गाँधीॐ
बाँट कर दे गया
असीम दर्द।
कवि का दर्द
छन्द में हुआ बंद
सुदूर गया।
कवि का दर्द
छन्द से हुआ मुक्त
दे गया अर्थ।
लिखा पढ़ा था
नौकरी नहीं मिली
मूर्ख हो गये।
स्याही ने लिखा
किस्मत की कहानी
जी दफ्तरों में।
न पढ़ते तो
डर नहीं लगता
मजदूरी से।
किस्मत बड़ी
दूब नपुंसक था
आबादी बढ़ी।
अरूण कुमार प्रसाद. ‚अगस्त 2009
ऊँचाई– गर्व
सहम गया नभ
खग जो उड़ा।
तम से ज्योति
ज्योति से विकाश को
दिवाली आती।
सृष्टि का कत्र्ता
सूर्य का धन्यवाद
छठ मैय्या जै।
झूठ की चादर
फैल–फैल खुद ही
जाती है फट।
रश्मि का सच
विकाश को अर्पित
रश्मि से बड़ा।
दिवाली गई
छोड़कर सवाल
वर्ष का हाल।
बडा बुरा है
जीवन का पड़ाव
पराजय हो।
जोड़ा है झूठ
राम का वनवास
दिपावली से।
रौशन है नॐ
दिपावली के दिये
रौशनी न हो।
अकर्मण्य को
भविष्य जान लेना
बड़ा आसान।
भूत है गीता
वत्र्तमान कुरूक्षेत्र
भविष्य कृष्ण।
चुभ जाये जो
बहुत ही महान
छोटी सी बात।
देता बदल
जीवन का पटल
सोच निर्मल।
सोचो महान
रश्मि से ओत–प्रोत
होगा विहान।
लौटना नहीं
चाहे बंद हो द्वार
दस्तक तो दो।
साहस करो
ऊँचा हो तो हो नभ
इरादे से–ना।
हे होॐ नक्सल
जँगल से निकल
रास्ते पे चल।
लेंघी मारना
सभ्यता का आदर्श
मारना सीख।
होता आया है
आसमान में छेद
इरादे तो हों।