हाइकु
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
गल्तियाँ करी
गिनती नहीं करी
कुचला गया
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फूर से आई
चिडिया दाना देख
फँसी जाल में
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कृष्ण मुरारी
चार धाम साजे रे
दर्सन दे दो
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मोरनी गाये
शोर सा मच गया
हुआ अचंभा
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