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30 Oct 2020 · 1 min read

हाइकु

मेरा भी मन
घरौंदा हो अपना,
अपनों संग।

घरौंदा बने
हरेक का सपना,
काश!पूरा हो।

बच्चें भी चाहें
छोटा ही सही पर,
अपना तो हो।

पेट न भरे
घरौंदा बने कैसे?
सपना भर।

बाढ़ आकर
सपनों का घरौंदा ,
उजाड़ गई।

उम्मीद कहाँ
अपने भी छत का,
किरायदार।

सपना घर
बना रहें हैं रोज,
इसी में खुश।

बिखर रहा
आशियाना सबका,
महँगाई है।

✍ सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 594 Views
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