हाइकु
ठंड की मार
बेरहम बयार
सिहरे हाड़।
ठण्ड है प्रचण्ड
कापता तन मन
है ठिठुरन।
कापते लोग
आग का उपयोग
ठण्ड भगाये।
शीत लहर
बरपारे कहर
कापे शहर।
छाया कोहरा
मार्तण्ड हैं ओझल
सूझे न कुछ।
है सब त्रस्त
निकले मार्तण्ड
कहर बंद।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’