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16 Jun 2018 · 1 min read

हाइकु

चाँद पर हाइकु
************

नभ से चाँद
परात में उतरा
खेलें श्रीराम।

चाँद निकला
पर तुम न आए
छाई उदासी।

चौथ की रात
सजी है सुहागन
पूजती चाँद।

चंदा मामा
कह माँ फुसलाती
खेल खिलाती।

थाली में चंदा
गरीब की रोटियाँ
भूख मिटाए।

प्यारा मुखड़ा
चौदहवीं का चाँद
सजी दुल्हन।

धवल ज्योत्स्ना
शारदीय पूर्णिमा
सुई पिरोई।

शिशिर रात
ठिठुरता है चंदा
मुस्काई ओस।

चंदा ने लूटी
नयनों से निंदिया
बैरी सजन।

घूँघट ओट
कैसे करूँ दीदार
छिपा है चंदा।

विरहा रात
दिल को जलाता है
दीवाना चाँद।

चाँदनी रात
झील में नहाता है
चाँद कंवल।

चाँद सी बिंदी
चमके चमचम
रात उजास।

चंदा रे चंदा
महकती चाँदनी
साथ में लाना।

चाँद सी गोरी
निखरता यौवन
रूप श्रृंगार।

रात्रि पथिक
निशा का हमराही
आवारा चंदा।

विरह व्यथा
अमावस की रात
चंदा सिसके।

ईद का चाँद
गले मिलके लोग
खुशियाँ बाँटें।

चाँद सा मुख
केसरिया बालम
आकुल मन।

डॉ. रजनी अग्रवाल’वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज,वाराणसी।
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
272 Views
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