हाइकु ( माघ व पूस)
हाइकु ( माघ व पूस)
माघ व पूस,
चले पवन ठंडी,
है शीतकाल।
*************
कंपकपाता,
बदन हरेक का,
लगती जाड़ा।
************
पेड़-पौधे भी,
ठिठुर रहे अब,
पंछी तो पंछी।
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…….✍️पंकज ‘कर्ण’
…………..कटिहार।।
हाइकु ( माघ व पूस)
माघ व पूस,
चले पवन ठंडी,
है शीतकाल।
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कंपकपाता,
बदन हरेक का,
लगती जाड़ा।
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पेड़-पौधे भी,
ठिठुर रहे अब,
पंछी तो पंछी।
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…….✍️पंकज ‘कर्ण’
…………..कटिहार।।