हाइकु: निर्झर
हाइकु: निर्झर
// दिनेश एल० “जैहिंद”
गिरी नदियाँ
झर-झर ऊँचे से
बने झरने ।।
बड़े निराले
है निर्मल शीतल
दे शीतलता ।।
मन मोहक
मन मोहनी छवि
तर-तर निर्झर ।।
गोते पे गोता
कहलाए जो सोता
निराली छटा ।।
उद्घोषक जो
है उत्तेजक स्वर
है उत्साही वो ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
09. 12. 2017