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7 Jun 2024 · 1 min read

हां मैं हस्ता हू पर खुश नहीं

हां मैं हस्ता हू पर खुश नहीं
सोता हू पर नींद नहीं
मैं खाता हूं पर भूख नही
सोचता हूं पर वो ख़ुआव नहीं……………
मैं बोलता हूं पर अब वो बात नहीं
अकेला हूं पर कोई पास भी नहीं

हम जिये या मरे पर सनम तुझे क्या
हम जागे या सोये पर सनम तुझे क्या

इन हवाओं में अब वो जज़्बात भी नहीं
काले बादल तो है पर बरसात भी नहीं
तू साथ होके भी साथ नहीं
हां ये दिल तो है साला प्यार भी नही ,

हम्म जिये या मरे पर सनम तुझे क्या
हम्म जागे या सोये पर सनम तुझे क्या

जिस चेहरे पे थी हसी , पर रहती हैं अब मायूसी
जिन आखों में थे सुअपन , पर हैं अब वो नम
जिन हाथों में थी क़लम , पर थामे है वो शराब
जिस दिल मे थे सनम , पर है अब वहाँ ज़ख्म
जिन बातों में थे तुम , पर रहते है अब चुप हम्म

हम जिये या मरे पर सनम तुझे क्या
हम जागे या सोये पर सनम तुझे क्या
हम हसे या रोये पर सनम तुझे क्या

The_dk_poetry

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