हां..मैं केवल मिट्टी हूं ..
हां..मैं मिट्टी हूं ..
जब धरती का परिश्रमी पुत मुझे .. पगो से रौंदते,
मुझ पर हल् के नुकीले कील कुरेदता ..
पीड़ा सहकर भी मैं…. एक दाना लेकर सैकड़ो आशीष रूपी धान्य.. अंक तुम्हारे भर देती हूं …
जीवन के चाक पर घुमाते , आग से तपते.. घूमते
तुम गढ़ते कलश करवा ,मीठे जल देकर मैं तुम्हारी अतरंग सखी बन जाती हूं ..
मेरे मिट्टी के सुंदर-सुंदर खिलौने को देख बच्चे जब मचलने लगते हैं मैं आंखो का तारा बन जाती हूं ..
समेट कर हर आस्था पूरी करतीं हर पिपासा तब
मैं ही तुम्हारे ग्राम देवता की शक्ति बन जाती हूं
जब करता है कोई गीली मिट्टी पर श्रृजन..
मातृत्व ..का आकार ले ,मैं ..बन प्रतिमा तु..
म्हारी आराध्या बन जाती हूं,
अक्सर पैर की धूल गगन में उड़ते हुए ..भाल पर जा बैठती है नजरो से गिरा धूल चटा देती हूं तत्काल
मैं मात्र मिट्टी हूं जमी में ही सजती हूं..
यह सबसे बड़ा देवत्व है , कि तुम पुरुषार्थ करते हुए मनुजत्व और मैं केवल एक स्वरूप पाती मिट्टी का अंश…..मैं मात्र मिट्टी हूं
पं अंजू पांडेय अश्रु रायपुर