हस्ताक्षर सरकारी और गैर-सरकारी*
*अपने हस्ताक्षर कर करके देखता हु
मिल न सका इनको स्थान,
सरकारी खजाने की हिस्सेदारी में,
कर करके देखता हु कोई मना न कर दें इनको,
तुम्हारे नहीं है भाई,अपनी कष्ट और नेक कमाई में,
सरकार तू कागज है,
हम अपनी हकीकत है,
देना होता है अपना श्रेष्ठ,
तब जाकर दो टूक रोटी मिलती है,
कागज़ भी है हकीकत भी है,
सरकारी से भी,गैर-पंजीकृत से भी लड़ते है,
इमान से कभी नहीं गिरते है,
लेते नहीं कभी घूस,
चाहे न रहे छप्पर पर फूँस,
निजी व्यापार हर कर से प्रभावित है,
एक लघु-उद्योग कहने को लघु है,
हर महकमे का भरते है,
बदले में फिर भी काम नहीं,
कब आना है तिथि वो निर्धारित करते है,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
रेवाड़ी(हरियाणा).