हसरतों के गांव में
-**हसरतों के गाॅंव में**
मन में हुक उठी है
दिल मेरा तड़प उठा
मुझको जाना अपने
हसरतों के गांव में।
जहां पर बीता बचपन मेरा
छोटा सा वह संसार है मेरा
गांव की मिट्टी की वह खुशबू
खेतों को जाते जाते
राह में खड़े पौधों से
वह रंग-बिरंगे फूलों का चुनना
राह में पेड़ों पर से
जामुन ,आम ,अमरूद
को देख मचलना
मुझको बहुत याद आता है
मेरे हसरतों का गांव।
वह बारिश के मौसम में
दौड़ दौड़ कर
पेड़ों के नीचे रुकना
छप -छप करते चलना
जैसे मिल गई हो खुशियां
मुझको यहां सारे जहां की
यादों से भरा पड़ा है
मुझको अब फिर जाना है
हसरतों के गांव में।
पापा की प्यारी गुड़िया थी
शहजादी सी रहती थी
तितली की तरह उड़ती थी
चेहरे पर खुशियां रहती थी
सोच के मैं तो सिहर उठी हूं
उन्मुक्त गगन में
बीता बचपन मेरा
मैं तो बदली सी मंडराती थी
अपने हसरतों के गांव में।
हरमिंदर कौर
अमरोहा यूपी
मौलिक रचना