हसरतें हर रोज मरती रहीं,अपने ही गाँव में ,
हसरतें हर रोज मरती रहीं,अपने ही गाँव में ,
आस लिये थी बैठने की पीपल की छाँव में ।
स्वप्न विश्रांति पा चुके कब के पौंछ के आँसू
जाने कब पड़ाव आ गया कातिलों के गाँव में।।
पाखी_मिहिरा
हसरतें हर रोज मरती रहीं,अपने ही गाँव में ,
आस लिये थी बैठने की पीपल की छाँव में ।
स्वप्न विश्रांति पा चुके कब के पौंछ के आँसू
जाने कब पड़ाव आ गया कातिलों के गाँव में।।
पाखी_मिहिरा