हवा के झोंको में जुल्फें बिखर जाती हैं
हवा के झोंको में जुल्फें बिखर जाती हैं
लाख करते हैं जतन ये बिखर जाती हैं
हवा के झोंको में…………….
देखने वाले समझते हैं कोई अदा है मेरी
कोई नहीं देखता ये खुद बिखर जाती हैं
हवा के झोंको में…………….
सिर उठाके चलूँ तो कहते हैं गुरूर मेरा
सिर झुका के चलूँ तो ये बिखर जाती हैं
हवा के झोंको में……………
लोग लिखते हैं गजल इन जुल्फों पे मेरी
कभी इधर कभी उधर ये बिखर जाती हैं
हवा के झोंको में…………….
नहीं सम्भलती हैं बस यही है कुसूर मेरा
‘विनोद’देख तूँ भी ये कैसे बिखर जाती हैं
हवा के झोंको में…………….