हवा का हुक़्म / (नवगीत)
उस हवा का
हुक़्म था
घर-घर समेटो ।
इस हवा का
हुक़्म है
धर-धर समेटो ।
गाल चींथो,
कान नोंचो ।
पेट-सी
आँतें खरोंचो ।
आदमी की
आँख नोंचो ।
पंछियों के
पाँख नोचो ।
ये हवा जो
उत्तरी है
छोड़ती है
प्रश्न जलते
घिनघिनाते,
भिनभिनाते ।
ये हवा जो
दक्षिणी है
दे रही
उत्तर विषैले
करकराते,
कसमसाते ।
इस हवा का
हुक़्म है
भर-भर समेटो ।
हाथ खा लो
पाँव खा लो ।
धूप खा लो
छाँव खा लो ।
भूख का हर
दाँव खा लो ।
शहर खा लो,
गाँव खा लो ।
ये हवा है
श्याम फंगस
छोड़ती है
प्रश्न गलते
बिलबिलाते
कुलबुलाते ।
ये हवा,जो
श्वेत फंगस
दे रही
उत्तर नशीले
मदमदाते
नसनसाते ।
इस हवा का
हुक़्म है
चर-चर समेटो
नाक काटो,
कान काटो ।
बढ़ रहा, वो
मान काटो ।
आन काटो,
बान काटो ।
चढ़ रही, वो
शान काटो ।
एक नारंगी
हवा है
छाँव इसकी
प्रश्न पलते
मिनमिनाते
गिड़गिड़ाते ।
एक हरियाली
हवा है
दाँव इसके
तल्ख़ उत्तर
कटकटाते
मरमराते ।
इस हवा का
हुक़्म है
मर-मर समेटो ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।