” हवाएं तेज़ चलीं , और घर गिरा के थमी ,
” हवाएं तेज़ चलीं , और घर गिरा के थमी ,
वो बे-कुसूर है , कुटिया गरीब की थी सखी ,
ये आंधियां भी , कभी नाम पूछती ही नहीं ,
फ़सल जले या जले घर , या रास्ते या ज़मीं ।”
✍️ नील रूहानी. . .
” हवाएं तेज़ चलीं , और घर गिरा के थमी ,
वो बे-कुसूर है , कुटिया गरीब की थी सखी ,
ये आंधियां भी , कभी नाम पूछती ही नहीं ,
फ़सल जले या जले घर , या रास्ते या ज़मीं ।”
✍️ नील रूहानी. . .