हलवा
‘क्या सचमुच बुढ़ापा बचपन जैसा हो जाता है’अस्सी साल की पार्वती यही सोचे जा रही थी। कई दिनों से उसका सूजी का हलवा खाने की तीव्र इच्छा हो रही थी। बल्कि….एक बेचैनी सी भी हो रही थी। ऐसा तो पहले कभी नही हुआ । बहु से कहने का मतलब था घर मे तूफान आना ।
क्या करे…अंत में उसने अपने सात साल के पोते चीकू का सहारा लिया । चीकू से कहलवाया ..’मम्मी हलवा बना दो बड़ा खाने का मन कर रहा है’….. बहु भी मूर्ख तो थी नहीं सब समझ गई। फिर तो वो बातों का हलवा बना जिसकी कड़वाहट का अंत ही नहीं। बेटे तक शिकायत पहुंची । बेटा भी माँ को ही समझाने आ गया….’ बच्चे से ऐसे नही कहलवाना चाहिये उस पर गलत असर पड़ेगा ‘….शर्म और अपमान से पार्वती को समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे। पूरे दिन घर का माहौल खराब रहा ।
घर के सामने रहने वाली रेनू ने भी सब कुछ सुना । अगले दिन जब पार्वती अकेली थी तो वो एक कटोरी में हलवा लेकर आई । पर पार्वती ने मना कर दिया । जितनी बेचैनी उसे तब खाने की हो रही थी उससे ज्यादा नफरत अब उसके नाम तक से हो रही थी।
एक महीने बाद अचानक दिल का दौरा पड़ने से पार्वती नहीं रहीं। आज उनकी तेरहवीं थी। रेनू चुपचाप एक कोने में बैठी थी। कढ़ाई भरकर हलवा बना था । बेटा बहु ब्राह्मणों को जबरदस्ती कर कर के खिला रहे थे । कह रहे थे पंडित जी कोई कमी न रह जाये । उनकी आत्मा तृप्त हो जाये । ……
26-09-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद