हर सरकारी योजना, हो जाती बेकार।
हर सरकारी योजना, हो जाती बेकार।
भ्रष्टाचारी तंत्र हैं, इसके जिम्मेदार।।
अंधों की सरकार है, बहरों का दरबार।
लूट खसोट मचा रहे, सारे लम्बरदार।।
जाने क्यों ख़ामोश है, दिल्ली का दरबार।
देश कर दिए खोखला, मंत्री, ठेकेदार।।
सब मशीन से हो रहा, मनरेगा का काम।
सरकारी परियोजना, बन गई झंडुबाम।।
अध्धा पौवा में लुभा, मनरेगा मजदूर।
लाभ लिये इस बात का, मुखिया जी भरपूर।।
बदल नहीं सकता कभी, समय और संयोग।
‘सूर्य’ न जाने क्यों लगा, हाय-हाय! का रोग।।
ज्यादा कुछ भी भाग्य से, मिले कभी ना यार।
सब जीवन के अंश हैं, जीत, खुशी, गम, हार।।
मरहम ऐसा है समय, भर देता हर घाव।
हिम्मत से बस काम लो, मानो सूर्य सुझाव।।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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