हर बार पूछती हो ” कैसे हो “–2
” बलरामपुरा ”
9 जून 1983
प्रिय मलय ,
कैसे हो ?
कुशल ही होगे प्रभु से ऐसी ही कामना करती हूं ।
नित लग्न से मेहनत कर रहे हो , जान कर अच्छा लगा ।
जैसा कि तुमने पत्र मे ही कहा है, तुम्हारा पत्र देर से ही मिला ।
वैसे तो मन इस देरी का आदि हो चुका है ,पर तुम्हारा पत्र न मिलने से मन में एक निर्वात निर्मित होता है फिर वहीं झंझावात और श्यामल मेघो की गर्जना और अश्रुपात ।
सिरहाना भींग कर यादो और भावनाओ का स्नेहिल दलदल बना देता है, जिसमे से मैं खुद भी नहीं निकलना चाहती , शायद इन अश्रुवो का ही पोषण पाकर प्रेम फलित हो रहा है हमारा ।
तुम्हे विचलित करने के लिए यह सब नही लिख रही हूं , लिख रही हूं क्योकी तुमसे मन स्थिती साझा करके मन को एक संतोष सा हो जाता है ।
पत्र में लिखा है तुमने, जवाबी खत़ देने में तुम कई अंर्तद्वंदो से घिर जाते हो, विदा लेते वक्त चीजे ऐसी तो नहीं थी,
तब तुम बेबाक थे, स्पष्टवादी , पूर्वाग्रह में फंस कर कभी कोई बात नहीं की तुमने, मेरा आशंकित मन तुम्हारे व्यक्तित्व और विचारो मे हो रहे बदलावो को आकार लेता देख रहा है । तुम्हारा दोष नहीं है । शहर की आवो हवा ही होती है ऐसी , संवेदनाएं जाती रहती है और अंत में मानव बस मशीन बन कर रह जाता है , भावनाएं और अपनत्व कुछ नहीं बचता तब ।
तुम्हारे जीवन में , मेरा अस्तित्व इन संवेदनाओ और भावनाओ की मिली जुली आभा है बस । वैसे तो हम एक – दूसरे से कोसो दूर है , पर इन भावनाओ और संवेदनाओ से ही आपस मे जुड़े हूए है । तुम्हारे चित से अगर भावनाएं जाती रही तो तुम्हारे जीवन से मेरा अस्तित्व भी जाता रहेगा, ये बात मन को एक अवसाद देती रहती है ।
मैं शायद खुद के लिए स्वार्थी हो रही हूं ,मन की कालिख लिख चुकी हूं , इतना बोल गई क्योंकी तुम्हारे प्रेम मे तुम जैसी ही हो गई हूं स्पष्टवादी और ” जूझारू ” ।
खूब लग्न से काम करो और स्थायी सफलता को प्राप्त करो , मेरी यही शुभकामना है ।
रहने खाने की क्या व्यवस्था किए हो , खत़ मे कुछ जिक्र नहीं किया तुमने । पुरानी आदत है तुम्हारी अक्खड़ फकीरो की तरह जीने की , सब कुछ बिखरा बिखरा सा । परदेश में , खुद को संभालना थोड़ा ।
गांव घर की चिंता अब मत करना , तुम्हारे परदेशिया हो जाने के बाद सब लोग अपने अपने काम धंधे मे रम गए है । कभी कभी तो लगता है , तुमने ही सब को आवारा बना रखा था ।
लिखना तो बहुत कुछ है पर,, अब विदा ।
खत़ की अपनी भी सीमाएं है ।
खत़ मिलते ही जवाब देना , तुम्हारी देरी से मन व्याकुल हो उठता है ।
तुम्हारा प्रेम
” स्वरा ”
सदानन्द कुमार
01/09/2019