हर दफ़ा जब बात रिश्तों की आती है तो इतना समझ आ जाता है की ये
हर दफ़ा जब बात रिश्तों की आती है तो इतना समझ आ जाता है की ये सब समाज के बनाये वो बंधन है जो जरूरत के तौर पे जोडे रखने के लिए होता है,
खैर सच कहूँ तो इतने रिश्तों को हमने आजमा लिया है की अब डर लगता है, जब इंसान का दूसरे लोगो के साथ रिश्ते बनने लगते है फिर पुराने रिश्ते उस पुराने फर्नीचर की तरह हो जाते है जिसे या तो इस्तेमाल करना ही लोग छोड देते है या फिर जरूरत से ज्यादा उसे इस्तेमाल नहीं करते…
खैर समय के साथ बदलते हालात के साथ लोगो का बदल जाना रिश्तों के कमजोरी दिखाता है वरना निभाने वाले बुरे हालात मे भी साथ देते है……
खैर इतना ज्ञान काफी होगा रिश्तों को समझने के लिए