हर खुशी पाकर रहूँगी…
हर खुशी पाकर रहूँगी…
हर खुशी पाकर रहूँगी।
विश्व में छाकर रहूँगी।
आसमां को चूम लूँगी।
भर खुशी में झूम लूँगी।
हैं अगर छोटी लकीरें,
कर जतन से जूम लूँगी।
लिंगभेदी मैं पुराने,
गढ़ सभी ढाकर रहूँगी।
स्वार्थहित जो बात करते।
पीठ पीछे घात करते।
रात की रंगीनियों में,
दिन किसी के रात करते।
कर्म काले उन सभी के,
सामने लाकर रहूँगी।
हौसला मिलता रहे बस।
मन-कमल खिलता रहे बस।
कामयाबी का सदा ये,
सिलसिला चलता रहे बस।
गूँज जिसकी हो गगन तक,
गीत वो गाकर रहूँगी।
गर्दिशों में गुम रहूँ क्यों ?
पाप नर के मैं सहूँ क्यों?
दे डुबा अस्तित्व मेरा,
उस नदी में मैं बहूँ क्यों ?
थीं कभी वर्जित हमें जो,
उन गली जाकर रहूँगी।
हक सभी पाकर रहूँगी।
सत्य मनवाकर रहूँगी।
विश्व में छाकर रहूँगी।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ. प्र.)
“दीपशिखा” में प्रकाशित