*हर कोना दिल का खाली*
हर कोना दिल का खाली
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हर कोना दिल का खाली है,
सूखी जीवन की डाली है।
बाहर से जो अपने दिखते,
अंदर से नियत काली है।
भूखे दिल से मन से तन से,
खाने बिन खाली थाली है।
कोयल भी गाना है भूली,
बजती ना कोई ताली है।
सीधे मुँह बातें कब करते,
बोलें वो दे कर गाली है।
माथे पर बिंदी किसकी है,
पहनी कानों मे बाली है।
मनसीरत को कैसे भाये,
यह आदत कैसी पाली है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)