हर्ष उत्कर्ष
चंचल चितवन चंद्र की , नलिनी गयी लजाय l
चंद्र कला रोने लगी , काम दम्भ बढ़ि जाय l
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कागज़ के टुकड़े किये , पन्ने बने हजार l
दिल पन्ने बिच बिछ गए , प्रियतम मन अनुहार l
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बरबस विरहन मन महल , थकित चतुर मन मोर l
बिछुड़त हरसत गुण प्रबल ,मदन मुदित चहुओर l
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रचनाएँ यदि हों अधिक , होता मन उत्साह l
पढ़ने में अच्छी लगे बढ़ जाए कवि चाह ll
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चंचल चितवन चन्द्रिका , चंद्र चरण अनुराग l
चपला चमकी यामिनी , प्रभा कामिनी भाग ll
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ह्रदय हर्ष उत्कर्ष मय, जीवन में आनंद l
खुशियाँ पाँव पखारती , प्रेम में परमान्द ll
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आज इकठ्ठे चल पड़े , बे मौसम के लोग l
जन सेवा करना नहीं , ह्रदय कामना भोग l
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी