हरियालौ सावन (ब्रजभाषा गीत)
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हरियालौ सावन
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सरर-सरर-सर सररररररर, पवन चलै मनभावन ।
तौ सखी समझ लै, आय गयौ री सावन ।।
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हरी निबौरी लगैं नीम कौ पेड़ झूम बौराबै,
धूप लगै काँटे-सी मनुआ ऊमस ते अकुलाबै,
बदरी के जब टुकड़ा खेलैं धूप-छाँव हर आँगन ।(1)
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बरसा की पहली फुहार जब, धरती कूँ सरसाबै,
सौंधी-सौंधी माँटी जब हर एक दिसा महकाबै,
हरौ रंग बिखरै चहुँ ओरा, खेतन क्यारी बागन।(2)
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डारन पै जब डारैं झूला, झूलैं मिलजुल छोरी,
पीहर कूँ जब जाय छोड़ कैं, सासुल कौ घर गोरी,
बाबुल के घर सुपने में जब, आय सताबै साजन ।(3)
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उमड़-घुमड़ कै कारे-कारे, जब मेघा घिर आमैं,
बिजुरी कड़कै ऐसी कै मन धीरन के दहलामैं,
झरर-झरर बरसैं जब बदरा, धरती है जाय पावन ।(4)
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महेश जैन ‘ज्योति’,मथुरा !
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