हरियाली
बहिना बोली यूँ भैया से,
ना झुमका, ना लाली ला l
लाना ही चाहे तो केवल,
ढेरों सी हरियाली ला l
बहिना बोली … l
अब चीं-चीं करते वो पंछी,
बच्चों के वो खेल कहां l
लील लिये आंगन महलों ने,
पहले जैसे मेल कहां l
दाना लाती और फुदकती,
गौरैया मतवाली ला l
लाना ही चाहे तो केवल,
ढेरों सी हरियाली ला l
बहिना बोली … l
नदियां-नाले-दरिया-पोखर,
घातक विष की खान बने l
मद में अन्धे नए दौर के,
लालच की पहचान बने l
जल-पूजन करने से पहले,
जा, जल में खुशहाली ला l
लाना ही चाहे तो केवल,
ढेरों सी हरियाली ला l
बहिना बोली … l
तोहफ़े में इक पौधा देना,
इसमें घटती शान नहीं l
हरियाली से है यह जीवन,
क्यों तुझको यह भान नहीं l
जिस पर कोकिल बैठे, कूके,
अब ऐसी इक डाली ला l
लाना ही चाहे तो केवल,
ढेरों सी हरियाली ला l
बहिना बोली … l
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
— राजीव ‘प्रखर’
मुरादाबाद
मो. 8941912642