*”हरियाली तीज’*
“हरियाली तीज”
सावन मास व हरियाली तीज का बहुत महत्वपूर्ण संजोग है एक दूसरे के साथ में गहरा संबंध है और सावन मास के त्यौहार एक संगम जैसा है जो हरियाली अमावस्या पर्व से इसकी शुरुआत हो जाती है ।
सभी त्यौहार सावन मास की हरियाली अमावस्या तिथि से श्री गणेश हो जाता है फिर साल भर उत्सवों पर्वो का सिलसिला चलता रहता है।
सावन माह में बारिश होने से चहुँ ओर हरियाली मानो ऐसी लगती है जैसे हरी चुनरिया ओढ़ कर हरित धरा पर स्वागत कर रही हो।
हरियाली देखकर मन के अंदर नई ऊर्जा का संचार होने लगता है हरियाली तीज धार्मिक सांस्कृतिक विरासत की धरोहर है।
तीज पर सुहागिन महिलाएं शिव पार्वती का पूजन आराधना कर दाम्पत्य जीवन के लिए सुख शांति की कामना करते हैं।
हरियाली तीज के मौके पर मोहल्ले की सखी सहेलियाँ समूह बनाकर शिव पार्वती का पूजन करते हैं।एक दूसरे के साथ में जुड़कर रिश्तों में ताजगी आ जाती है।
ये सावन मास का त्यौहार पीहर याने मायका से जोड़ता है। शादीशुदा सुहागन महिलाएं सावन मास का विशेष तौर से प्रतीक्षा करती है।
घर गृहस्थी बसाने के बाद अक्सर मायका छूट सा जाता है शादी के कुछ दिनों तक आना जाना लगे रहता है फिर बाद में घर परिवार की जिम्मेदारी में उलझ कर मायका जाने का सुअवसर खोजते ही रहती है और सावन माह में हरियाली तीज से रक्षाबंधन पर्व पर भाई व पिता की आने की बाट जोहते रहती है।
“अम्माँ मेरे बाबा को भेजो री कि सावन आया है”
प्रतीक्षा का अंत तब होता है जब कोई मायके से लेने आता है। मायके पहुँचकर भाई बहनों ,माता पिता के साथ जो स्नेह प्रेम मिलता है उसे बयां नही किया जा सकता है।
पेड़ो पर झूले डाल ,सोलह श्रृंगार कर हरी चुनरिया ओढे झूला झूलते हुए सखियाँ कजरिया गाती हैं। एक दूसरे से अपने मन की बातें साझा करती है।
*”झूला झूल रही सखियाँ ,झूला पेंग बार बार।
नाच उठे अनगिनत मयूर वन में इठलाकर*
अंबर पर इंद्रधनुष रंग लहराया
सावन आयो री ……….
इस तरह से नारी के जीवन में हर्षोल्लास होकर ऊर्जावान हो जाती है मन प्रफुल्लित हो उठता है।
हरियाली तीज का संदेश –
पीहर जाने की खुशी तो बहुत होती है साथ ही साथ मन उमंगों तरंगों से भर जाता है चेहरा खिल उठता है। इस तीज के पर्व माध्यम से महिलाएं जीवन साथी के प्रति प्रेम को अभिव्यक्त करती है। इससे पता चलता है कि दाम्पत्य जीवन हमेशा खुशहाल रहेगा।
देवी पार्वती जी ने कठोर तपस्या कर शिव जी को प्राप्त किया था उनमें प्रेम समर्पण भाव व विश्वास था कि वह शिव जी की अर्धाग्नि बनी जबकि शिव जी तो बैरागी थे उन्होंने पार्वती जी को समझाया था कि वह महलों में रहने वाली रानी राजकुमारी है कैलाश पर्वत पर सुख सुविधाएं उपलब्ध नहीं है विहीन जीवन कैसे जी सकती हो लेकिन पार्वती जी हर चीजों को त्यागकर शिव जी को पाने के लिए सभी सुख सुविधाओं को त्यागने को तैयार हो गई थी।
आखिर माता पार्वती जी का प्रेम विजयी हुआ उन्होंने शिव जी को सदा के लिए अपना बना लिया था।
इसी तरह शिव पार्वती जी ने अपने दाम्पत्य जीवन की नींव रखी थी दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव ही था जो अलग अलग प्रकृति के होने के बाद भी एकाकार हो गए थे।
शिव पार्वती को आदर्श दांपत्य जीवन का प्रतीक माना गया है।यदि इसी तरह से समर्पण भाव प्रेम स्नेहिलप्रेम हर दांपत्य जीवन में आत्मसात कर ले तो दांपत्य जीवन सुखी व खुशहाल बना रहेगा।
आज हम इन संस्कृति को भूलते जा रहे हैं ।भले ही पूरे विधि विधान से यह पर्व नही मना सकते हैं लेकिन आधुनिक शैली में यह बिसार देते हैं।
हरियाली तीज के अवसर पर कई जगहों में भव्य आयोजन झूला डालकर किये जाते हैं महिलाएं गीत गाती हैं और एक दूसरे को झूला झुलाती है नृत्य करती है और सभी सखी सहेलियाँ मिल जाती है तो तीज के हर्षोल्लास उमंगों में डूब जाती है।
सावन मास का महत्व को समझें जिससे आने वाले जीवन में उल्लासपूर्ण वातावरण बना रहे और भारतीय संस्कृति व परम्पराओं से जुडे रहे ताकि जो हमारे घर परिवार ,कुटुंब समाज को बांधे रखता है इसके कारण जीवन का अमूल्य धरोहर बची रहे और सुखी जीवन खुशहाल हो सके।
शशिकला व्यास
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