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20 May 2023 · 1 min read

हरित आम्र

विधा-पद्य (कुंडलिया छंद)
शीर्षक- “हरित आम्र”

गर्मी में आँधी चली, गिरे शाख से आम।
विटप विलगता झेलते, छूट गया निज धाम।।
छूट गया निज धाम, पीर खंडित हो सहते।
हरित रूप लख आम, प्रफुल्लित बालक रहते।।
करती लू बेहाल, वात में शेष न नरमी।
उपहासित कर हाल, विहँसती जग पर गर्मी।।

भरकर मन उन्माद रस, बालक खाते आम।
पीर झलकती नेत्र से, मिले न पूरे दाम।।
मिले न पूरे दाम, पीत आभा तन छीनी।
पाती जीभ न स्वाद, आम्र खट्टे बिन चीनी।
आते औषध काम, रखे “रजनी” चख-चखकर ।
पत्र,डाल,फल,छाल, सदा रखना भर-भरकर।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)

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