हरिगीतिका छंद विधान सउदाहरण ( श्रीगातिका)
हरिगीतिका छंद ( श्रीगातिका)
विशेषता- (इसको वर्णानुसार (ह रि गी ति का )चार बार
16 – 12 में लिख दिया जाए , तब हरिगीतिका छंद बन जाता है
व यदि मापनी हटा दी जाए , तब यह सार छंद कहलाएगा |
कुछ छंदाचार्या का यह भी कथन है कि यदि मापनी 2122 लिखें , तब इसे “श्रीगीतिका “कहना चाहिए | किंतु छंद एक ही है , कुछ भी मापनी लिख लो |
(हरिगीतिका हरिगीतिका हरि , गीतिका हरिगीतिका )
११२१२ ११२१२ ११ , २१२ ११२१२ = 28
प्रभु आपका जब नाम लेकर , सोचता मन छंद है |
इस लोक में तब देखते कवि , आप में रवि चंद है ||
गुण आपके जब गान में रख , देखते जब वृंद है |
जड़ चेतना फल फूल में शुभ , आप का मकरंद है ||
प्रभु आपका हम नाम लेकर , सोचते जब धर्म है |
तब ग्रंथ से शुचि ज्ञान लेकर , जानते शुभ कर्म है ||
कटुता हवा जब पास आकर , घेरती मन मर्म है |
तब बोधि से प्रभु नूर पाकर , भागती सब शर्म है ||
चमकें सदा अब भाल भारत, कर्म का सद् ज्ञान हो |
जिसमें दिखे सुख भारती यश, धर्म से जन गान हो ||
प्रभु आप ही जब राम होकर , मानते जग धाम है |
तब धाम के उस राम को हम ,जानते सुख नाम है ||
2212×4 श्रीगीतिका / हरिगीतिका
मुक्तक
2212 2212. 2. 212. 2212
देखें जहाँ भी सत्यता है , गीत गाते आदमी |
दूरी नहीं होती वहाँ भी , मीत पाते आदमी |
हारें नहीं पूँजी जरा भी , जीत जाते आदमी –
हैं देवता भी साथ देने , ये सुनाते आदमी |
©®सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य, दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०